स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँ चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँउमेश पाण्डे
|
7 पाठकों को प्रिय 440 पाठक हैं |
क्या आप जानते हैं कि सामान्य रूप से जानी वाली कई जड़ी बूटियों में कैसे-कैसे विशेष गुण छिपे हैं?
काला धतूरा
काले धतूरे के विभिन्न नाम
हिन्दी में- धतूरा, धतूरा, संस्कृत में- धतूर, धूर्त, धुस्तूर, उन्मत, कनक, देवताकितव, तूरी, महामोही, शिवप्रिय, मातुल, मदन, बंगाली में- धुतूरा, मराठी में- धोत्रा, धोतरा, गुजराती में- धतुरो, कन्नड में- मद कुंजीके, तेलगु में- नाल्लाउम्मीते, तामिल में- उमतताई, असमी में-जोजमालील, अंग्रेजी में- Thorn Apple (थार्न एप्पल)
लेटिन में - डाटुरा स्ट्रमोनियम (Datura stramonium)
काले धतूरे का संक्षिप्त परिचय
धतूरे के पौधे प्राय: सर्वत्र पाये जाते हैं जिनमें श्वेत धतूरा सभी स्थानों पर पाया जाता है। इसके पुष्प बिलकुल सफेद रंग के होते हैं तथा इनकी आकृति घंटे की तरह होती है। पुष्प के अग्रभाग में भीतर की तरफ गंधक रंग की रेखा और बाहर की तरफ मामूली बैंगनी रंग के चिह्न होते हैं। फूल एक ही होता है, पते पान के आकार के कुछ नोकदार, अनीदार, कड़वे, बड़े तथा कोमल होते हैं। फल गोल सेव की तरह होते हैं किन्तु ऊपर छोटे-छोटे कोमल कांटे होते हैं।
इसके चार भेद हैं- श्वेत, कृष्ण, नील और पीत।
इनमें से कृष्ण धतूरे का रंग काला गाढ़े रंग का होता है। इसके पते, डण्ठल तथा पुष्प सब काले होते हैं। एक-एक पुष्प में 3 से 7 तक पुष्प एक के भीतर दूसरा, दूसरे के भीतर तीसरा इसी प्रकार से 7 पाये जाते हैं। यही स्थिति पीत और नील धतूरे की भी है। इनमें फूलों व पत्तों के रंग अलग होते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य आकार-प्रकार सब एक जैसे रहते हैं। फूल का आकार बड़ा व लम्बा होता है। ऐसा एक के भीतर एक लगे रहने से होता है।
काले धातूरे का धार्मिक महत्त्व
काले धतूरे का धार्मिक प्राचीनकाल से ही रहा है। इसके फल एवं फूल भगवान शिव को अत्यधिक पसंद हैं, इस कारण यह भी माना जाता है कि इस पौधे पर भगवान शिव की विशेष कृपा है। इसलिये इसकी जड़ आदि के प्रयोग करने पर अप्रत्यक्ष रूप से साधक पर भगवान शिव की कृपा हो जाती है। यहाँ पर काले धतूरे के कुछ विशेष धार्मिक प्रयोगों के बारे में बताया जा रहा है:-
> काले धतूरे की जड़ को अपने निवास में स्थान देने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है और आगे बढ़ने के अवसर निर्मित होने लगते हैं। इसके लिये मंगलवार का दिन उपयुक्त रहता है। मंगलवार के दिन प्रात:काल काले धतूरे के पौधे को जलार्पित कर अगरबत्ती लगाकर, कल्याण की कामना करते हुये, सूर्योदय काल में इसकी जड़ किसी लकड़ी के बने औजार द्वारा उत्तराभिमुख होकर खोद लें। इसे मौन रहते हुये घर ले आयें। घर आकर इस जड़ को अगर सम्भव हो तो गंगाजल से अथवा स्वच्छ जल से ठीक से धो लें। अब घर के पूजा स्थल में इस जड़ को रखकर अपने इट के किसी भी मंत्र का 108 बार जाप करें किन्तु यदि आप ॐ नम: शिवाय मंत्र का जाप करते हैं तो अधिक उत्तम रहेगा। इसके पश्चात् इस जड़ को लाल वस्त्र में लपेट कर अपने धन रखने के स्थान, तिजोरी आदि में रख दें। इसके पश्चात् परिवार में सुख-शांति एवं समृद्धि के अवसर निर्मित होने लगते हैं, धन की वृद्धि बनी रहती है।
> जिस दिन रवि पुष्य नक्षत्र हो उस दिन पूर्व निमंत्रण देकर सुबह के समय स्नान आदि से निवृत होकर काले धतूरे की जड़ को प्राप्त कर लें। उपरोक्त अनुसार इस जड़ को स्वच्छ करके चाँदी के ताबीज में डालकर काले धागे में पिरोकर गले में धारण कर लें।ऐसा करने के पश्चात् भगवान शिव की कृपा से वह ऊपरी बाधा अथवा नजर लगने की समस्याओं से व्यक्ति मुक्त रहता हैं। > शुभ मुहूर्त में काले धतूरे की जड़ विधि अनुसार प्राप्त कर लें। इसी प्रकार छितवन नामक वृक्ष की मूल भी विधि अनुसार शुभ मुहूर्त में ले आयें। छितवन को सतपर्णी भी कहते हैं। सतपर्णी का लेटिन नाम अल्सटोनिया स्क्रॉलेरिस है। इन दोनों प्रकार की जड़ों के एकएक टुकड़े को ताबीज में भरकर काले धाग में पिरोकर गले अथवा बांह में धारण कर लें। ऐसा करने से धनागमन के अवसर अनायास रूप से निर्मित होने लगते हैं। अगर आप व्यापार करते हैं तो आपका रुका हुआ धन शीघ्र प्राप्त होने के अवसर बनने लगते हैं। व्यापार तेजी से प्रगति करता है।
> काले धतूरे के रस से निर्मित यंत्र भी बहुत चमत्कारिक प्रभाव देता है। इसके लिये एक स्वच्छ भोजपत्र प्राप्त कर लें। धतूरे के पत्तों को स्वच्छ जल से धोकर पीस लें। फिर इसका रस एक कटोरी में निकाल लें। यंत्र लेखन के लिये अनार की टहनी से कलम का निर्माण कर लें। अनार की टहनी उपलब्ध न होने पर पीपल वृक्ष की टहनी भी काम में लाई जा सकती है। अब बाजोट बिछा कर उसके ऊपर लाल वस्त्र बिछायें। बाजोट के सामने ऊनी आसन बिछाकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जायें और भोजपत्र पर अग्रांकित यंत्र का निर्माण करें। यंत्र निर्माण के पश्चात् यंत्र को बाजोट पर रखें और धूप-अगरबत्ती दिखायें। इसके पश्चात् अपने इष्ट के किसी भी मंत्र का एक, तीन अथवा पांच माला जाप करें। अब इस यंत्र को उठा कर लेमिनेट करवाकर जेब में रख लें। ऐसा करने से आपको किसी प्रकार का शत्रु भय नहीं रहेगा और आपके विरोधी आपका किसी प्रकार का अनिष्ट नहीं कर पायेंगे। यंत्र इस प्रकार है:-
> जो व्यक्ति काले धतूरे के पौधे को घर में पालता है, नित्य उस पर जलार्पित करता है तथा श्रावण मास में इसके फलों को एक या एकाधिक बार भगवान शिव को अर्पित करता है,उसे अकालमृत्यु का सामना नहीं करना पड़ता है। उसके परिवार में भी किसी सदस्य की अकाल मृत्यु नहीं होती है।
> काले धतूरे की जड़ को धारण करने से ऊपरी हवा अथवा ऊपरी बाधाओं से मुक्ति प्राप्त होती है। इसके लिये रविवार को निकाली गई काले धतूरे की जड़ को चाँदी के ताबिज में डालकर काले डोरे से भुजा में बांधने से प्रेतबाधा दूर होती है।
काले धतूरे का ज्योतिष में महत्त्व
> ज्योतिष शास्त्र के द्वारा विभिन्न प्रकार की ग्रह पीड़ा को शांत करने के लिये औषधीय स्रान एक उपयोगी उपाय है। औषधीय स्नान के लिये काले धतूरे की जड़ चमत्कारिक प्रभाव दिखाती है। शुभ मुहूर्त में काले धतूरे की जड़ को प्राप्त कर लें। इसके टुकड़ों को (यदिएकाधिक हों तो) सिलाई करने वाले धागे से भली प्रकार से लपेटकर गड़ी बना लें। रोज स्नान के जल में इस गड़ी को 5 मिनट तक रखकर निकाल लें और उसे किसी सुरक्षित स्थान पर रख दें। फिर उस जल से स्नान करें।ऐसा 40 दिनों तक करें। इसके पश्चात् गडुी को बहते जल में प्रवाहित कर दें अथवा पीपल वृक्ष के नीचे छोड़ दें। इस प्रकार का स्नान करने से सर्वग्रह पीड़ा शांत होती है।
काले धतूरे का वास्तु में महत्त्व
> काले धतूरे का पौधा घर की सीमा में परम शुभ होता है। इसे घर के ईशान कोण पर अथवा ईशान क्षेत्र में रखें। एक ही गमले में काले धतूरे के साथ तुलसी का पौधा होना अत्यधिक शुभ है। काले धतूरे के फल प्राप्त कर शिवजी को अर्पित करें। इस पौधे को घर की छत पर न रखें।
काले धतूरे का औषधीय महत्त्व
धतूरा विष वर्ग का पौधा है, जो भगवान शिव को बहुत पसंद है। धतूरा के फल एवं फूल भगवान शिव को विशेष रूप से चढ़ाये जाते हैं। इस दृष्टि से इस पौधे का महत्व बहुत अधिक हो जाता है। इसके साथ-साथ इस पौधे का औषधीय दृष्टि से भी बहुत महत्व है। यहां संक्षित रूप से धतूरा पौधे के औषधीय प्रयोगों के बारे में जानकारी दी जा रही है:-
> दमा रोग में धतूरा को बहुत उपयोगी पाया है। दमा की स्थिति में इसका प्रयोग धूम्रपान के रूप में किया जाता है। इसके लिये धतूरा के एक फल और इसी वजन के बराबर पते तथा शाखा प्राप्त करके सुखा लें। सूखने के बाद इन्हें दरदरा कूट लें। अब एक चिलम लेकर उसमें धतूरा के कूटे हुये मिश्रण को भर कर सुलगा लें।फिर धीरे-धीरे कश लें। इससे श्वास रोगों में लाभ मिलता है। > गठिया के रोगों में धतूरा का सिद्ध किया तेल प्रयोग करने से आशातीत लाभ की प्राप्ति होती है। इसके लिये धतूरा के पंचांग का रस निकाल कर तिल के तेल में पकायें। जब रस पूरी तरह से जल जाये तो तेल को नीचे उतार कर ठण्डा होने दें। तत्पश्चात् इसे छान कर शीशी में भर लें। जिस स्थान पर गठिया का दर्द हो, वहां पहले सिद्ध तेल की मालिश करें और फिर धतूरा के पत्तों को हल्का गर्म करके बांध दें। दर्द से मुक्ति मिलेगी। इस तेल को आप अन्य प्रकार से भी सिद्ध कर सकते हैं। धतूरा की जड़, शाखा, पते, फूल तथा फल समान मात्रा में लेकर ठीक से कूट लें। अब एक किलो तिल का तेल लेकर गर्म करें और उसमें धतूरा के पंचांग का कूटा मिश्रण डाल दें। धीरे-धीरे तेल गर्म होने से पंचांग जलने लगेगा। जब यह पूरी तरह से जल जाये तो नीचे उतार कर ठण्डा होने दें और फिर छान लें। इस तेल का उपयोग दर्द वाले स्थान पर किया जा सकता है। किसी प्रकार की चोट लगने से अगर रक्तस्राव हो रहा हो तो वहाँ इस तेल का प्रयोग बिलकुल नहीं करें।
> सूजन को दूर करने में भी धतूरा बहुत उपयोगी पाया गया है। धतूरा के कुछ पते लेकर उन्हें कूट कर लुगदी बना लें। इसमें अगर थोड़ी मात्रा में शिलाजीत भी मिला ली जाये तो बहुत उत्तम रहेगा। शिलाजीत मिश्रित इस लुगदी का लेप करने से सूजन में बहुत अधिक एवं शीघ्र लाभ मिलता है। अगर लेप करने के पश्चात् धतूरे के पौधे के पते भी हल्के गर्म करके बांध दिये जायें तो शीघ्र लाभ प्राप्त हो सकता है।
> जोड़ों के दर्द में, विशेष रूप से घुटनों के दर्द में इसके पत्तों पर हल्का सा तिल का तेल चुपड़कर गर्म करें और घुटनों पर बांध दें। इसके बाद इस पर कुछ समय तक सेक करें। इससे दर्द में बहुत शीघ्र आराम मिलता है।
> धतूरे की पत्तियों के रस में पकाया हुआ तेल शिरोपीड़ा एवं चर्मरोगों में अत्यधिक लाभकारी है। इसके लिये 100 ग्राम धतूरे की पत्तियों को ठीक से कूट लें। 500 ग्राम तिल का तेल लेकर उसे गर्म करें। इसमें कुटी हुई धतूरे की पत्तियों को तब तक पकायें जब तक वे जल न जायें। बाद में तेल को आंच से हटाकर ठण्डा होने पर छान लें।यही सिद्ध तेल है।
> काले धतूरे के पत्तों का स्वरस अफीम तथा पुनर्नवा के साथ पीसकर लेप करने से वातपीड़ा दूर होती हैं। इसी प्रयोग से हाथ-पैरों का शोथ भी दूर होता है।
> रक्तार्श में पीड़ा होने पर धतूर-मलहम लगाने से लाभ होता है। यह मलहम बाजार में उपलब्ध है।
> सायटिका में इसके मूल एवं पत्तों से सिद्ध किये तेल की मालिश करने से लाभ होता है। तेल सिद्ध करने की विधि ऊपर लिखी है।
काला धतूरा का दिव्य प्रयोग
काला धतूरा का सम्पूर्ण पौधा ही दिव्य होता है। यह साक्षात् शिवरूप होता है। इसकी दिव्यता का लाभ लेने हेतु इसके पौधे को श्याम तुलसी के पौधे के साथ एक ही गमले में लगाने तथा पालने से तथा उनमें नित्य दूध मिश्रित जल चढ़ाने से परम कल्याण होता है। काला धतूरा भगवान शिवजी का रूप है तथा तुलसी विष्णुप्रिया होने के कारण साक्षत् भगवान विष्णु का रूप है तथा इन दोनों की मूल के संयुक्त रूप में सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी का निवास माना गया है। अत: इस प्रकार के पूजन से त्रिदेव का पूजन हो जाता है।
इसी प्रकार जो व्यक्ति विधि अनुसार काले धतूरे की मूल को मंगलवार को निकाल कर घर में तिजोरी में रखता है उसकी सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है तथा घर में सम्पूर्ण रूप से शांति रहती है।
|
- उपयोगी हैं - वृक्ष एवं पौधे
- जीवनरक्षक जड़ी-बूटियां
- जड़ी-बूटियों से संबंधित आवश्यक जानकारियां
- तुलसी
- गुलाब
- काली मिर्च
- आंवला
- ब्राह्मी
- जामुन
- सूरजमुखी
- अतीस
- अशोक
- क्रौंच
- अपराजिता
- कचनार
- गेंदा
- निर्मली
- गोरख मुण्डी
- कर्ण फूल
- अनार
- अपामार्ग
- गुंजा
- पलास
- निर्गुण्डी
- चमेली
- नींबू
- लाजवंती
- रुद्राक्ष
- कमल
- हरश्रृंगार
- देवदारु
- अरणी
- पायनस
- गोखरू
- नकछिकनी
- श्वेतार्क
- अमलतास
- काला धतूरा
- गूगल (गुग्गलु)
- कदम्ब
- ईश्वरमूल
- कनक चम्पा
- भोजपत्र
- सफेद कटेली
- सेमल
- केतक (केवड़ा)
- गरुड़ वृक्ष
- मदन मस्त
- बिछु्आ
- रसौंत अथवा दारु हल्दी
- जंगली झाऊ